Tuesday, April 21, 2020

कारक



कारक

कारक का सामान्य प्रयोग:



वे शब्द जो वाक्य में क्रिया के साथ प्रत्यक्ष संबंध दर्शाते हैंकारक कहलाते हैं। तथा जिन प्रत्ययों से कारकों का अर्थ प्रकट होता हैविभक्ति कहलाते हैं।
हिन्दी में जिस प्रकार से कर्ता का क्रिया के साथ संबंध बताने के लिए इन कारकों का प्रयोग किया जाता हैवैसे ही संस्कृत भाषा में विभक्तियों का प्रयोग होता है।
संस्कृत भाषा में संबंध को कारक नहीं माना गया है क्योंकि संबंध का क्रिया से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता है।
जैसे:
राज्ञपुरुषगच्छति।
अर्थातराजा का पुरुष जाता है।
यहाँ राजा का गच्छति क्रिया से संबंध नही है। अतइसे कारक की संज्ञा नहीं दी जा सकती है।
एक उदाहरण की सहायता से आप कारक तथा विभक्ति को समझने का प्रयास करें।
हे छात्रा:!(11) दशरथस्य(10)सुत:(1) राम:(2) दण्डकारण्यात्(8)लङ्का(3)गत्वा युद्धे(9)रावण(4)बाणेन(6)हत्वा विभीषणाय(7)लङ्काराज्यम्(5)अयच्छत्(12)
नीचे दी गई तालिका के आधार पर हम इस वाक्य को कारक के अनुसार लगाएंगे।
क्रम संख्या
शब्द:/पदानि
कारकम्
विभक्ति
1, 2
सुत:, राम:
कर्ता (ने)
प्रथमा
3, 4, 5
लङ्कारावणंलङ्काराज्यम्
कर्म (को)
द्वितीया
6
बाणेन
करणम् (सेके द्वारा)
तृतीया
7
विभीषणाय
सम्प्रदान (के लिए)
चतुर्थी
8
दण्डकारण्यात्
अपादान (से पृथक होने के लिए)
पञ्चमी
9
युद्धे
अधिकरण (मेंपेपर)
सप्तमी
इनकी सहायता से आप प्रत्येक विभक्ति पर कम-से-कम दो-दो वाक्य अवश्य बनाएं।
विभक्ति अर्थ एवं प्रयोग
जिन शब्दों या प्रत्ययों द्वारा कारकों का अर्थ प्रकट होता हैविभक्ति कहलाते हैं।
अब हम एक-एक करके सभी विभिक्तियों एवं उनसे जुड़े कारकों पर चर्चा करेगें।
1. प्रथमा विभक्ति तथा कर्ता कारक
जिसके द्वारा कार्य किया जाता हैउसे कर्ता कहते हैंतथा इसके लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग करते हैं।
जैसे: राम: गच्छति।
राम जाता है।
यहाँ आप देख सकते हैं कि गच्छति (जानाक्रिया राम द्वारा की जा रही है। अतराम कर्ता हैजिसके लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
2.द्वितीया विभक्ति तथा कर्म कारक
कर्ता को जो कार्य सबसे अभीष्ट होता हैउसे कर्म कारक कहते हैं।
"कर्तृरीप्सीतमम् कर्म"
कर्म कारक के लिए द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे: रामलङ्कां गच्छति।
राम लंका जाता है।
यहाँ राम के लिए लंका जाना अभीष्ट है। अतयह कर्म कारक हुआजिसके लिए द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
3. तृतीया विभक्ति तथा करण कारक
जिस साधन की सहायता से कार्य संपन्न किया जाता हैउसे करण कारक कहते हैं।
इसके लिए तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे: रामपुष्पकविमानेन लङ्कां गच्छति।
राम पुष्पकविमान से लंका जाता है।
यहाँ कर्ता राम पुष्पकविमान से क्रिया को संपन्न करता है। अतयह करण कारक हैजिसके लिए तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
4. चतुर्थी विभक्ति तथा संप्रदान कारक
जिसके लिए कार्य संपादित होता हैउसे संप्रदान कारक कहा जाता है। इसके लिए चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे: रामसीतायै लङ्कां गच्छति।
राम सीता के लिए लंका जाता है।
यहाँ रामसीता के लिए जाने का कार्य करता है। अतसीता संप्रदान कारक हैजिसके लिए यहाँ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
5. पञ्चमी विभक्ति तथा अपादान कारक
जिससे अलग/पृथक होने का कार्य होउस पद को अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक के लिए पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे: रामवनात् लङ्कां गच्छति।
राम वन से लङ्कां जाता है।
यहाँ राम वन से अलग होकर लङ्कां जाता हैअतयह अपादान कारक है। इसके लिए पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग किया गया है।
6. षष्ठी विभक्ति
षष्ठी विभक्ति का प्रयोग संबंध बताने के लिए किया जाता है।
जैसे: रावणस्य भ्राता विभीषण:
रावण का भाई विभीषण।
7. सप्तमी विभक्ति तथा अधिकरण कारक
कार्य के आधार को अधिकरण कहते हैं। इसके लिए सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
जैसे: राम वने वसति स्म।
राम वन में रहे थे।
यहाँ वसति क्रिया वन में संपन्न हुई। अतयह अधिकरण कारक है। इसके लिए सप्तमी विभक्ति का प्रयोग किया गया है।

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home