8th11पाठ
[शिक्षा हमारा अधिकार है। हमारे समाज में कई समुदाय इससे लम्बे समय तक वञ्चित रहे हैं। उन्हें इस अधिकार को पाने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा है। लड़कियों को तो और ज्यादा अवरोध झेलना पड़ता रहा है। प्रस्तुत पाठ इस संघर्ष का नेतृत्व करने वाली प्रातः स्मरणीय एवम् अनुकरणीय महिला शिरोमणि सावित्री बाई फुले के योगदान पर केन्द्रित है।]
उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति। मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।
जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे १८३१ तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाम्नि स्थाने सावित्री अजायत। तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खण्डोजी इति अभिहितौ। नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा-फुले-महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्पः एव आसीत्। यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबलः समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्याः मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्साहं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।
१८४८ तमे दिृस्ताब्दे पुणेनगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत्। १८५१ तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्धः।
सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम् अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्धरणम् अवारयन्। सावित्री एतत् अपमानं सोढुं नाशक्नोत्। सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।
‘महिला सेवामण्डल’ ‘शिशुहत्या प्रतिबन्धक गृह’ इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फुलेदम्पत्योः अवदानं महत्त्वपूर्णम्। सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।
सावित्री अनेकाः संस्थाः प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता- सामग्री-व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत्। महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम् असाध्यरोगेण ग्रस्ता १८९७ तमे ख्रिस्ताब्दे निधनं गता।
साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते ‘काव्यफुले’ ‘सुबोधरत्नाकर’ चेति। भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।
फुले िशा हमारा अिधकार है। हमारेसमाज मकई समुदाय इससेलेसमय तक वित रहेह। उइस अिधकार को पानेके िलए ला सघंषकरना पड़ा है। लड़िकयोंको तो और ादा अवरोध झेलना पड़ता रहा है। ुत पाठ इस संघषका नेतृ करनेवाली सािवी बाई फुलेके योगदान पर केत है। ऊपर बनेिच को देखो। यह िच िकसी पाठशाला का है। यह साधारण पाठशाला नहींहै। यह हैमहाराकी पहली का पाठशाला। एक िशिका घर से पुकलेकर चलती है। मागमकोई उस पर धूल फकता हैतो कोई पर के टुकड़े। परुवह अपनेढ़ िनय सेनहींहटती। अपनेिवालय मबािलकाओंके साथ हँसी मज़ाक सेबातकरती ई वह उपढ़ानेमलगी रहती है। उसका अपना अयन भी साथ-साथ ही चलता है। कौन हैयह मिहला? ा तुम इस मिहला को जानतेहो? यह महाराकी पहली मिहला िशिका हैिजसका नाम सािवी बाई फुलेहै। जनवरी महीनेके तीसरेिदन सन 1831 ईसवी ममहाराके नायगाँव नामक थान पर सािवी जी। उनकी माता लीबाई और िपता खंजेजी थे। नौ वषकी आयुमही उनका िववाह महोदय ोितबा फुलेके साथ हो गया। वह यं भी तेरह वषके ही थे। ोिकं वेी िशा के बल समथक थेइसिलए सािवी के मन मथत अयन की अिभलाषा बल हो गई। इससेपहलेउसनेआहपूवक आलभाषा (अंेजी) का अयन भी िकया। सन् 1848 ईी मपुणेनगर मसािवी नेोितबा महोदय के साथ काओंके िलए देश का पहला िवालय आर िकया। तब वह केवल सह वषकी ही थी। सन् 1851 ई. मछुआछूत सेितरृत समुदाय की बािलकाओंके िलए उसनेअलग सेिवालय आरंभ िकया। सामािजक कुरीितयोंका सािवी नेमुखर िवरोध िकया। िवधवाओंके िसर मुँडानेके िनराकरण करनेके िलए वह साात नाइयोंसेिमली। परणामत: कुछ नाइयों नेइस िढ का साथ छोड़ िदया। एक बार सािवी नेमागमदेखा िक कुए के पास फटेपुरानेकपडोंमिलपटी तथाकिथत िन जाित की कुछ नारयाँजल पीनेके िलए माँगती थी। उ वगवालोंनेउपहास करतेए कुएँसेजल िनकालनेसेरोक िदया। सिवी यह अपमान नहींसहन कर सकी। वह उन योंको अपनेघर लेगई और तालाब िदखाकर कहा िजतना चाहो उतना जल लेलो। यह तालाब सावजिनक है। इससेजल लेनेमजाित का बन नहींहै। उसनेमनु की समानता व तंता के प का पूरी तरह व हमेशा समथन िकया। 'मिहला सेवा मल', िशशुहा ितबंधक गृह आिद संथाओंकी थापना मफुलेदि का महपूणयोगदान है। सशोधक मल की गितिविधयोंपर भी सािवी अिधक सिय थी। इस मल का उे था- "सताए ए समुदायोंको अपनेअिधकारोंके िलए जागृत करना।" सािवी नेअपनेशासन कौशल सेअनेक संथाओंका सालन िकया। अकाल और ेग के समय उसनेपीिड़त लोगोंकी िबना थके सेवा की। सहायता सामी की वथा के िलए भरसक यास िकया। महामारी फैलनेके समय सेवा मलगी ई वह यं असा रोग से होकर सन् 1897 ई. मगवासी हो गई। सिह रचना मभी सािवी आगेहै। उसके दो का संकलन ह- 'का फूले' और 'सुबोधराकर'। भारत देश ममिहलाओंके उान की गहन जानकारी के िलए सािवी महोदया के जीवन चर का अयन अव करना चािहए।
फुले िशा हमारा अिधकार है। हमारेसमाज मकई समुदाय इससेलेसमय तक वित रहेह। उइस अिधकार को पानेके िलए ला सघंषकरना पड़ा है। लड़िकयोंको तो और ादा अवरोध झेलना पड़ता रहा है। ुत पाठ इस संघषका नेतृ करनेवाली सािवी बाई फुलेके योगदान पर केत है। ऊपर बनेिच को देखो। यह िच िकसी पाठशाला का है। यह साधारण पाठशाला नहींहै। यह हैमहाराकी पहली का पाठशाला। एक िशिका घर से पुकलेकर चलती है। मागमकोई उस पर धूल फकता हैतो कोई पर के टुकड़े। परुवह अपनेढ़ िनय सेनहींहटती। अपनेिवालय मबािलकाओंके साथ हँसी मज़ाक सेबातकरती ई वह उपढ़ानेमलगी रहती है। उसका अपना अयन भी साथ-साथ ही चलता है। कौन हैयह मिहला? ा तुम इस मिहला को जानतेहो? यह महाराकी पहली मिहला िशिका हैिजसका नाम सािवी बाई फुलेहै। जनवरी महीनेके तीसरेिदन सन 1831 ईसवी ममहाराके नायगाँव नामक थान पर सािवी जी। उनकी माता लीबाई और िपता खंजेजी थे। नौ वषकी आयुमही उनका िववाह महोदय ोितबा फुलेके साथ हो गया। वह यं भी तेरह वषके ही थे। ोिकं वेी िशा के बल समथक थेइसिलए सािवी के मन मथत अयन की अिभलाषा बल हो गई। इससेपहलेउसनेआहपूवक आलभाषा (अंेजी) का अयन भी िकया। सन् 1848 ईी मपुणेनगर मसािवी नेोितबा महोदय के साथ काओंके िलए देश का पहला िवालय आर िकया। तब वह केवल सह वषकी ही थी। सन् 1851 ई. मछुआछूत सेितरृत समुदाय की बािलकाओंके िलए उसनेअलग सेिवालय आरंभ िकया। सामािजक कुरीितयोंका सािवी नेमुखर िवरोध िकया। िवधवाओंके िसर मुँडानेके िनराकरण करनेके िलए वह साात नाइयोंसेिमली। परणामत: कुछ नाइयों नेइस िढ का साथ छोड़ िदया। एक बार सािवी नेमागमदेखा िक कुए के पास फटेपुरानेकपडोंमिलपटी तथाकिथत िन जाित की कुछ नारयाँजल पीनेके िलए माँगती थी। उ वगवालोंनेउपहास करतेए कुएँसेजल िनकालनेसेरोक िदया। सिवी यह अपमान नहींसहन कर सकी। वह उन योंको अपनेघर लेगई और तालाब िदखाकर कहा िजतना चाहो उतना जल लेलो। यह तालाब सावजिनक है। इससेजल लेनेमजाित का बन नहींहै। उसनेमनु की समानता व तंता के प का पूरी तरह व हमेशा समथन िकया। 'मिहला सेवा मल', िशशुहा ितबंधक गृह आिद संथाओंकी थापना मफुलेदि का महपूणयोगदान है। सशोधक मल की गितिविधयोंपर भी सािवी अिधक सिय थी। इस मल का उे था- "सताए ए समुदायोंको अपनेअिधकारोंके िलए जागृत करना।" सािवी नेअपनेशासन कौशल सेअनेक संथाओंका सालन िकया। अकाल और ेग के समय उसनेपीिड़त लोगोंकी िबना थके सेवा की। सहायता सामी की वथा के िलए भरसक यास िकया। महामारी फैलनेके समय सेवा मलगी ई वह यं असा रोग से होकर सन् 1897 ई. मगवासी हो गई। सिह रचना मभी सािवी आगेहै। उसके दो का संकलन ह- 'का फूले' और 'सुबोधराकर'। भारत देश ममिहलाओंके उान की गहन जानकारी के िलए सािवी महोदया के जीवन चर का अयन अव करना चािहए।
शब्दार्थाः
आदाय - लेकर
प्रस्तरखण्डान् - पत्थर के टुकड़ों को
सविनोदम् - हँसी मजाक के साथ
आलपन्ती - बात करती हुई
अजायत - पैदा हुई
अभिहितौ - कहे गये हैं
परिणीता - ब्याही गयी
अस्पृश्यतया - छुआछूत के कारण
प्रारब्धः - आरम्भ किया
निराकरणाय - दूर करने के लिए
रूढौ - रूढ़ि में, रिवाज में
शीर्णवस्त्रावृताः - फटे-पुराने, चिथड़े वस्त्रों को धारण करती हुई
पातुम् - पीने के लिए
सोढुम् - सहने में
उत्पीडितानाम् - सताए हुओं का
अश्रान्तम् - बिना थके हुए
महीयते - बढ़-चढ़कर हैं
गहनावबोधाय (गहन+अवबोधाय) - गहराई से समझने के लिए
अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरत-
(क) कीदृशीनां कुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम् अकरोत्?
(ख) के कूपात् जलोद्धरणम् अवारयन्?
(ग) का स्वदृढनिश्चयात् न विचलति?
(घ) विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा कैः मिलिता?
(ङ) सा कासां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत?
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) किं किं सहमाना सावित्रीबाई स्वदृढनिश्चयात् न विचलति?
(ख) सावित्रीबाईफुलेमहोदयायाः पित्रोः नाम किमासीत्?
(ग) विवाहानन्तरमपि सावित्र्याः मनसि अध्ययनाभिलाषा कथम् उत्साहं प्राप्तवती?
(घ) जलं पातुं निवार्यमाणाः नारीः सा कुत्र नीतवती किञ्चाकथयत्?
(ङ) कासां संस्थानां स्थापनायां फुलेदम्पत्योः अवदानं महत्त्वपूर्णम्?
(च) सत्यशोधकमण्डलस्य उद्देश्यं किमासीत्?
(छ) तस्याः द्वयोः काव्यसङ्कलनयोः नामनी के?
3. रेखाङ्कितपदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) सावित्रीबाई, कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती अध्यापने संलग्ना भवति स्म?
(ख) सा महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका आसीत्?
(ग) सा स्वपतिना सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत?
(घ) तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा समर्थितः?
(ङ) साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते?
4. यथानिर्देशमुत्तरत-
(क) इदं चित्रं पाठशालायाः वर्तते- अत्र ‘वर्तते’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
(ख) तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति - अस्मिन् वाक्ये विशेष्यपदं किम्?
(ग) अपि यूयमिमां महिलां जानीथ- अस्मिन् वाक्ये ‘यूयम्’ इति पदं केभ्यः प्रयुक्त्तम्?
(घ) सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती - अस्मिन् वाक्ये ‘सा’ इति सर्वनामपदं कस्यै प्रयुक्तम्?
(ङ) शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म - अत्र ‘नार्यः’ इति पदस्य विशेषणपदानि कति सन्ति, कानि च इति लिखत?
5. अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत-
(क) स्वकीयम् - ........................................................
(ख) सविनोदम् - ........................................................
(ग) सक्रिया - ........................................................
(घ) प्रदेशस्य - ........................................................
(ङ) मुखरम् - ........................................................
(च) सर्वथा - ........................................................
6. (अ) अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत-
(क) उपरि - ........................................................
(ख) आदानम् - ........................................................
(ग) परकीयम् - ........................................................
(घ) विषमता - ........................................................
(ङ) व्यक्तिगतम् - ........................................................
(च) आरोहः - ........................................................
(आ) अधोलिखितपदानां समानार्थकपदानि पाठात् चित्वा लिखत-
मार्गे अविरतम अध्यापने अवदानम् यथेष्टम् मनसि
(क) शिक्षणे - ........................................................
(ख) पथि - ........................................................
(ग) हृदय - ........................................................
(घ) इच्छानुसारम्- ........................................................
(ङ) योगदानम् - ........................................................
(च) निरन्तरम् - ........................................................
7. (अ) अधोलिखितानां पदानां लिङ्ग, विभक्ति, वचनं च लिखत-
पदानि | लिङ्गम् | विभक्तिः | वचनम् |
(क) धूलिम् - | ............. | ............. | ............. |
(ख) नाम्नि - | ............. | ............. | ............. |
(ग) अपरः - | ............. | ............. | ............. |
(घ) कन्यानाम् - | ............. | ............. | ............. |
(ङ) सहभागिता | ............. | ............. | ............. |
(च) नापितैः | ............. | ............. | ............. |
7. (आ) उदाहरणमनुसृत्य निर्देशानुसारं लकारपरिवर्तनं कुरुत-
यथा - सा शिक्षिका अस्ति। (लङ्लकारः) सा शिक्षिका आसीत्।
(क) सा अध्यापने संलग्ना भवति। (लृटलकारः)
(ख) सः त्रयोदशवर्षकल्पः अस्ति। (लङ्लकारः)
(ग) महिलाः तडागात् जलं नयन्ति। (लोट्लकारः)
(घ) वयं प्रतिदिनं पाठं पठामः। (विधिलिङ्ग)
(ङ) यूयं किं विद्यालयं गच्छथ? (लृटलकारः)
(च) ते बालकाः विद्यालयात् गृहं गच्छन्ति।(लङ्लकारः)
योग्यता-विस्तारः
भावविस्तारः
सावित्री फुले सामाजिक उत्त्थानकर्त्री के अतिरिक्त एक कवयित्री भी रही हैं आइये उनकी कुछ कविताओं का रसास्वादन करें-
एक बालगीत में बच्चों को दिया गया संदेश-
करना है जो काम आज,
उसे करो तुम तत्काल
जो करना है दोपहर में,
उसे कर लो तुम अभी आज
पल भर के बाद का काम
पूरा कर लो इसी वक्त।
- स्वाभिमान से जीने के लिए
पढ़ाई करो पाठशाला की।
इन्सानों का सच्चा गहना शिक्षा है,
चलो पाठशाला चलो।
- चलो चलें पाठशाला हमें है पढ़ना, नहीं अब वक्त गंवाना।
ज्ञान विद्या प्राप्त करें, चलो हम संकल्प करें।
अज्ञानता और गरीबी की, गुलामीगिरी चलो तोड़ डालें
सदियों का लाचारी भरा जीवन चलो फेंक दें।
हमें न हो इच्छा कभी आराम की
ध्येय साध्य करें पढ़कर शिक्षा का।
अच्छे अवसर का आज ही सदुपयोग करें,
हमें प्राप्त हुआ है सहयोग समय का।
प्रकृति का सार्वभौमिक सत्य जियो और जीने दो का प्रतिपादन-
मानव जीवन को करें समृद्ध,
भय, चिन्ता सभी छोड़कर आओ
खुद जीएँ और औरों को भी जीनें दें
मानव प्राणी, निसर्ग सृष्टि
एक ही सिक्के के दो पहलू।
एक जानकर सारी जीवसृष्टि को,
प्रकृति के अमूल्य निधि मानव की चलो, कद्र करें।
भाषाविस्तारः
• सामान्यतः वाक्यों में कारकचिह्ननों के प्रयोग को संस्कृत में शब्दरूपों के माध्यम से जाना जाता है, अब तक हम अनेकानेक शब्दरूपों का प्रयोग जानते समझते रहे हैं, जैसे अकारान्त-आकारान्त-ईकारान्त-इत्यादि। प्रस्तुत पाठ में ‘सावित्रीबाई’, इस शब्द में यदि हम सावित्री शब्द का प्रयोग करना चाहें तो ईकारान्त नदी शब्द के समान कर सकते हैं सावित्री-सावित्र्याः (षष्ठी), सावित्र्यै - (चतुर्थी) इत्यादि पर यदि हम संस्कृत वाक्य में ‘सावित्रीबाई’ इस पूर्ण नाम का प्रयोग करना चाहें तो रूप बनाना सम्भव नहीं है क्योंकि अन्त में ‘आ’ तथा ई दो स्वर आ रहे हैं तो जिस प्रकार सावित्री में ई पूर्व ‘त्र’ स्वरविहीन हो रहा है उस प्रकार से ‘सावित्रीबाई’ में सम्भव नहीं है अतः एेसे स्थानों पर पुल्लिंग में ‘महोदय’ शब्द तथा स्त्रीलिङ्ग में महोदया शब्द जोड़कर अकारान्त तथा आकारान्त शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अतः सावित्रीबाई-महोदयाम् (द्वि.) सावित्रीबाई महोदयायै (चतुर्थी), सावित्रीमहोदयायाः (पञ्चमी-षष्ठी) इत्यादि प्रकार से प्रयोग किया जाएगा।
• हम इससे पहले भी 1-100 तक संस्कृत संख्याशब्द तो सीख ही चुके हैं तथा इन्हीं के प्रयोग द्वारा लम्बी संख्याएँ संस्कृत में कैसे लिखी और बोली जा सकती हैं! ये भी हम सीख चुके हैं आइये अब इनका पुनरभ्यास करते हैं-
१८३१- तमे ख्रिस्ताब्दे सावित्री अजायत
एकत्रिंशत्-अधिक अष्टादशशतम् तमे ख्रिस्ताब्दे सावित्री अजायत।
अर्थात् हमें अन्त से प्रारम्भ करके अक्षर स्थान (Place Value) के आधार पर संख्या बतानी है- मध्य में अधिक का प्रयोग करते हुए।
इसी प्रकार पाठ में आए अन्य संख्यात्मक शब्दों को संस्कृत में पढ़िए तथा अपने जन्मादि वर्ष का भी संस्कृत में अभ्यास कीजिए।
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