Tuesday, April 14, 2020

8th8पाठ

Our Past -3

अष्टमः पाठः

संसारसागरस्य नायकाः


[प्रस्तुत पाठ अनुपम मिश्र की कृति आज भी खरे हैं तालाब के संसार सागर के नायक नामक अध्याय से लिया गया है। इसमें विलुप्त होते जा रहे पारम्परिक ज्ञान, कौशल एवं शिल्प के धनी गजधर के सम्बन्ध में चर्चा की गयी है। पानी के लिए मानव निर्मित तालाब, बावड़ी जैसे निर्माणों को लेखक ने यहाँ संसार सागर के रूप में चित्रित किया है।]

के आसन् ते अज्ञातनामानः?

शतशः सहस्रशः तडागाः सहसैव शून्यात् न प्रकटीभूताः। इमे एव तडागाः अत्र संसारसागराः इति। एतेषाम् आयोजनस्य नेपथ्ये निर्मापयितॄणाम् एककम्, निर्मातॄणां च दशकम् आसीत्। एतत् एककं दशकं च आहत्य शतकं सहस्रं वा रचयतः स्म। परं विगतेषु द्विशतवर्षेषु नूतनपद्धत्या समाजेन यत्किञ्चित् पठितम्। पठितेन तेन समाजेन एककं दशकं सहस्रकञ्च इत्येतानि शून्ये एव परिवर्तितानि। अस्य नूतनसमाजस्य मनसि इयमपि जिज्ञासा नैव उद्भूता यद् अस्मात्पूर्वम् एतावतः तडागान् के रचयन्ति स्म। एतादृशानि कार्याणि कर्तुं ज्ञानस्य यो नूतनः प्रविधिः विकसितः, तेन प्रविधिनाऽपि पूर्वं सम्पादितम् एतत्कार्यं मापयितुं न केनापि प्रयतितम्।

अद्य ये अज्ञातनामानः वर्तन्ते, पुरा ते बहुप्रथिताः आसन्। अशेषे हि देशे तडागाः निर्मीयन्ते स्म, निर्मातारोऽपि अशेषे देशे निवसन्ति स्म।

गजधरः इति सुन्दरः शब्दः तडागनिर्मातॄणां सादरं स्मरणार्थम्। राजस्थानस्य केषुचिद् भागेषु शब्दोऽयम् अद्यापि प्रचलति। कः गजधरः? यः गजपरिमाणं धारयति स गजधरः। गजपरिमाणम् एव मापनकार्ये उपयुज्यते। समाजे त्रिहस्त- परिमाणात्मिकीं लौहयष्टिं हस्ते गृहीत्वा चलन्तः गजधराः इदानीं शिल्पिरूपेण नैव समादृताः सन्ति। गजधरः, यः समाजस्य गाम्भीर्यं मापयेत् इत्यस्मिन् रूपे परिचितः।

गजधराः वास्तुकाराः आसन्। कामं ग्रामीणसमाजो भवतु नागरसमाजो वा तस्य नव-निर्माणस्य सुरक्षाप्रबन्धनस्य च दायित्वं गजधराः निभालयन्ति स्म। नगरनियोजनात् लघुनिर्माणपर्यन्तं सर्वाणि कार्याणि एतेष्वेव आधृतानि आसन्। ते योजनां प्रस्तुवन्ति स्म, भाविव्ययम् आकलयन्ति स्म, उपकरणभारान् सङ गृह्णन्ति स्म। प्रतिदाने ते न तद् याचन्ते स्म यद् दातुं तेषां स्वामिनः असमर्थाः भवेयुः। कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य गजधरेभ्यः सम्मानमपि प्रदीयते स्म।
नमः एतादृशेभ्यः शिल्पिभ्यः।

 नायका:  (ुत पाठ अनुपम िम की कृित ''आज भी खरेहतालाब के संसार सागर के नायक'' नामक अाय सेिलया गया है। इसमिवलु होतेजा रहेपाररक ान, कौशल एवं िश के धनी गजधर के स मचचाकी गई है। पानी के िलए मानव िनिमत तालाब, बावड़ी जैसेिनमाणोंको लेखक नेयहाँसंसार सागर के प मिचित िकया है।) कौन थेवेिबना नाम वाले? सकड़ो, ं सहो (ं हज़ारो) ं तालाब अचानक (यं) कट नहींए। येतालाब ही यहाँसंसार-सागर कहेगए ह। इनके आयोजन के नेप मिनमाण करानेवालोंकी इकाई (एक-एक) तथा िनमाण करनेवालोंकी दहाई (दस-दस) थी। इस इकाई और दहाई को जोड़कर सैकड़ा या हज़ार रचतेथे। परुिपछलेदो शतकोंमनई रीित सेसमाज नेजो कुछ पढ़ा। उस पढ़ाई सेसमाज ने (उस) इकाई, दहाई और हज़ार को शू मेबदल िदया। इस नूतन समाज के मन मयह िजासा भी उ नहींई िक इससेपूवइतनेतालाबोंको कौन बनातेथे? ऐसेकाय को करनेके िलए ान की जो नई िविध िवकिसत ई, उस िवशेष पित के ारा पहलेिकए गए इन काय को मापनेके िलए िकसी नेभी यास नहींिकया। आज जो अात नाम वालेह, पहलेवेबत िस थे। पूरेदेश मतालाब बनाए जातेथे। बनानेवालेभी पूरेदेश मरहतेथे। 'गजधर' यह सुर श तालाब बनानेवालोंके सादर रण के िलए है। राजथान के कुछ भागोंमयह श आज भी चिलत है। गजधर कौन? जो 'गज' की माप को धारण करता है, वह 'गजधर' है। गज की माप मापन कायके िलए होती है। समाज मतीन हाथ (तीन फुट) की नाम वाली लोहेकी छड़ी को हाथ मलेकर चलने वालेगजधर अब िशी के प मभी सािनत नहींह। गजधर जो समाज की गहराई मापे, इस प मपरिचत ह। गजधर वाुकार थे। चाहेामीण समाज हो या नागरक समाज उसके नविनमाण और सुरा की वथा का दािय गजधर िनभातेथे। नगरीय वथा सेलघु िनमाण तक सारेकायइींपर आधारत थे। वेयोजना ुत करतेथे, होनेवालेयोंका आकलन करतेथे, साधन सामी का संह भी करतेथे। बदलेमवेवह नहींमाँगतेथेजो उनके ामी देनेमअसमथहोतेथे। काम की समा पर वेतन के अलावा गजधरोंको सान भी िदया जाता था

शब्दार्थाः

सहसैव (सहसा+एव) - अकस्मात्, अचानक
प्रकटीभूताः - प्रकट हुए, दिखाई दिए
नेपथ्ये - पर्दे के पीछे
तडागाः - तालाब
निर्मापयितॄणाम् - बनवाने वालों की
निर्मातॄणाम् - बनाने वालों की
एककम् - इकाई
दशकम् - दहाई
शतकम् - सैकड़ा
सहस्रकम् - हजार
जिज्ञासा - जानने की इच्छा
उद्भूता - उत्पन्न हुई, जागृत हुई
अस्मात्पूर्वम् - इससे पहले
मापयितुम् - मापने/नापने के लिये
प्रयतितम् - प्रयत्न किया
बहुप्रथिताः - बहुत प्रसिद्ध
अशेषे - सम्पूर्ण
निर्मीयन्ते स्म - बनाए जाते थे
निर्मातारः - बनाने वाले
गजधरः - गज (लंबाई, चौड़ाई, गहराई, मोटाई मापने की लोहे की छड़) को धारण करने वाला व्यक्ति
तडागनिर्मातॄणाम् - तालाब बनाने वालों के
त्रिहस्तपरिमाणात्मिकीम् - तीन हाथ के नाप की
लौहयष्टिम् - लोहे की छड़
समादृताः - आदर को प्राप्त
गाम्भीर्यम् - गहराई
वास्तुकाराः - भवन आदि का निर्माण करने वाले
कामम् - चाहे, भले ही
निभालयन्ति स्म - निभाते थे
आधृतानि - आधारित
आकलयन्ति स्म - अनुमान करते थे
उपकरणसम्भारान् - साधन सामग्री को
सङगृह्णन्ति स्म - संग्रह करते थे
प्रतिदाने - बदले में
याचन्ते स्म - माँगते थे
अतिरिच्य - अतिरिक्त

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरत-
(क) कस्य राज्यस्य भागेषु गजधरः शब्दः प्रयुज्यते?
(ख) गजपरिमाणं कः धारयति?
(ग) कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य गजधरेभ्यः किं प्रदीयते स्म?
(घ) के शिल्पिरूपेण न समादृताः भवन्ति?

2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि लिखत-
(क) तडागाः कुत्र निर्मीयन्ते स्म?
(ख) गजधराः कस्मिन् रूपे परिचिताः?
(ग) गजधराः किं कुर्वन्ति स्म?
(घ) के सम्माननीयाः?

3. रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत-
(क) सुरक्षाप्रबन्धनस्य दायित्वं गजधराः निभालयन्ति स्म।
(ख) तेषां स्वामिनः असमर्थाः सन्ति।
(ग) कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य सम्मानमपि प्राप्नुवन्ति।
(घ) गजधरः सुन्दरः शब्दः अस्ति।
(ङ) तडागाः संसारसागराः कथ्यन्ते।

4. अधोलिखितेषु यथापेक्षितं सन्धिं/विच्छेदं कुरुत-
(क) अद्य + अपि = ...............
(ख) .......... + .......... = स्मरणार्थम्
(ग) इति + अस्मिन् = ...............
(घ) .......... + .......... = एतेष्वेव
(ङ) सहसा + एव = ...............

5. मञ्जूषातः समुचितानि पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
रचयन्ति गृहीत्वा सहसा जिज्ञासा सह
(क) छात्राः पुस्तकानि .................... विद्यालयं गच्छन्ति।
(ख) मालाकाराः पुष्पैः मालाः ................................।
(ग) मम मनसि एका ............................... वर्तते।
(घ) रमेशः मित्रैः ................. विद्यालयं गच्छति।
(ङ) ...................... बालिका तत्र अहसत।

6. पदनिर्माणं कुुरुत-
धातुःप्रत्ययःपदम्
यथा- कृ  +तुमुन्= कर्तुम्
हृ + तुमुन्= .............
तृ +तुमुन्= .............
यथा- नम् +क्त्वा = नत्वा
गम् +क्त्वा = .............
त्यज् +क्त्वा = .............
भुज् +क्त्वा = .............
उपसर्गःधातुःप्रत्ययः= पदम्
यथा- उपगम्ल्यप्= उपगम्य
सम्पूज्ल्यप्= .............
नील्यप्= .............
प्रदाल्यप्= .............
7. कोष्ठकेषु दत्तेषु शब्देषु समुचितां विभक्तिं योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा- विद्यालयं  परितः  वृक्षाः  सन्ति।  (विद्यालय)
(क) .................... उभयतः ग्रामाः सन्ति। (ग्राम)
(ख) .................... सर्वतः अट्टालिकाः सन्ति। (नगर)
(ग) धिक् ....................। (कापुरुष)

यथा- मृगाः  मृगैः  सह  धावन्ति।  (मृग)
(क) बालकाः .................... सह पठन्ति। (बालिका)
(ख) पुत्र .................... सह आपणं गच्छति। (पितृ)
(ग) शिशुः .................... सह क्रीडति। (मातृ)

योग्यता-विस्तारः

अनुपम मिश्र- जल संरक्षण के पारंपरिक ज्ञान को समाज के सामने लाने का श्रेय जिन लोगों को है श्री अनुपम मिश्र (जन्म 1948) उनमें अग्रगण्य हैं। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ और ‘राजस्थान की रजत बूँदें’ पानी पर उनकी बहुप्रशंसित पुस्तकें हैं।

भाषा-विस्तारः

कारक
सामान्य रूप से दो प्रकार की विभक्तियाँ होती हैं।
1. कारक विभक्ति 
2. उपपद विभक्ति।
कारक चिह्नों के आधार पर जहाँ पदों का प्रयोग होता है उसे कारक विभक्ति कहते हैं। किन्तु किन्हीं विशेष पदों के कारण जहाँ कारक चिह्नों की उपेक्षा कर किसी विशेष विभक्ति का प्रयोग होता है उसे उपपद विभक्ति कहते हैं, जैसे-
सर्वतः अभितः, परितः, धिक् आदि पदों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
उदा - (क) विद्यालयं परितः पुष्पाणि सन्ति।
(ख) धिक् देशद्रोहिणम्।

सह, साकम्, सार्द्धम्, समं के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
उदा - (क) जनकेन सह पुत्रः गतः।
(ख) दुर्जनेन समं सख्यम्।

नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा के योग में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है-
उदा - (क) देशभक्ताय नमः।
(ख) नमः एतादृशेभ्यः शिल्पिभ्यः।
(ग) जनेभ्यः स्वस्ति।

अलम् शब्द के दो अर्थ हैं-पर्याप्त एवं मत (वारण के अर्थ में)। पर्याप्त के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है जैसे-देशद्रोहिणे अलं देशरक्षकाः।

मना करने के अर्थ में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे-अलं विवादेन।
विना के योग में द्वितीया, तृतीया एवं पञ्चमी विभक्तियाँ होती हैं, जैसे-परिश्रमं/ परिश्रमेण/परिश्रमात् विना न गतिः। 
निम्नलिखित क्रियाओं के एकवचन बनाने का प्रयास करें-
आकलयन्ति,  सङ   गृह्णन्ति,  प्रस्तुवन्ति।
जिज्ञासा-जानने की इच्छा। इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं-पिपासा, जिग्मिषा, विवक्षा, बुभुक्षा।

भाव-विस्तारः

अगर हम ध्यान से देखें तो हमारे चारों तरफ ज्ञान एवं कौशल के विविध रूप दिखाई देते हैं। इसमें कुछ ज्ञान और कौशल फलते-फूलते हैं और कई निरंतर क्षीण होते हैं। इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं। पानी का व्यवस्थापन संरक्षण और खेती-बाड़ी का पारंपरिक तौर-तरीका, शिल्प तथा कारीगरी का ज्ञान दुर्लभ और विलुप्त होने के कगार पर है। वहीं अभियान्त्रिकी एवं संचार से संबंधित ज्ञान नए उभार पर हैं। दरअसल किस तरह का ज्ञान और कौशल आगे विकसित और प्रगुणित होगा और किस तरह का ज्ञान एवं कौशल पिछड़ेगा, विलुप्त होने के लिए विवश होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि देश और समाज किस तरह के ज्ञान एवं कौशल के विकास में अपना भविष्य सुरक्षित एवं सुखमय मानता है।

परियोजना-कार्यम्

आने वाली छुट्टियों में अपने आस-पास के क्षेत्र के उन पारंपरिक ज्ञान एवं कौशलों का पता लगाएँ जिनका स्थान समाज में अब निरंतर घट रहा है। उन्हें कोई उचित प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है या वे विलुप्त होने के कगार पर हैं। उनकी एक सूची भी तैयार करें और उनके लिए प्रयुक्त होने वाले संस्कृत शब्द लिखें। अपने और अपने मित्रों द्वारा तैयार की गई अलग-अलग सूचियों को सामने रखते हुए इन पारंपरिक कौशलों के विलुप्त होने के कारणों का पता लगाएँ।

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