8th 4पाठ सदैव पुरुषों निधेहि चरणम।
[श्रीधरभास्कर वर्णेकर द्वारा विरचित प्रस्तुत गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है। इसके प्रणेता राष्ट्रवादी७ कवि हैं और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का सन्देश दिया है।]
चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो .......................।।
पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो .......................।।
जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्।।
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो .......................।।
धे( िहीधरभार चरणम् (लोट वणकर्-िवक…े ारािवरिचत ुत गीत मचुनौितयोंको ीकार करतेए आगेबढ़नेका आान िकया गया है। इसके णेता रावादी किव हऔर इस गीत के ारा उोनं ेजागरण तथा कमठता का सेश िदया है।) लोट्-िविधिलङ्-योग: चल चल पुरतो िनधेिह चरणम्। सदैव पुरतो िनधेिह चरणम्॥ सरलाथ चलो चलो, आगेकदम बढ़ाओ। सदैव आगेकदम बढ़ाओ। िगरिशखरेननुिनजिनकेतनम्। िवनैव यानंनगारोहणम्॥ बलंकीयंभवित साधनम्। सदैव पुरतो ------------------॥ सरलाथ मेरा िनवास पवत की चोटी पर है। यान के िबना मपवतारोहण करता ँ। अपना बल ही मु साधन होता है। सदैव आगेकदम बढ़ाओ। पिथ पाषाणा िवषमा: खरा:। िहंा: पशव: परतो घोरा:॥ सुदुरं खलुयिप गमनम्। सदैव पुरतो ------------------॥ सरलाथ मागमटेढ़ेमेढ़ेऔर नुकीलेपर ह। चारोंतरफ़ भयंकर व िहंसक पशुहजबिक गमन बत किठन है। (िफर भी) सदैव आगेकदम बढ़ाओ। जहीिह भीितंभज भज शम्। िवधेिह राेतथाऽनुरम्॥ कु कु सततंेय-रणम्। सदैव पुरतो ------------------॥ सरलाथ भय को ागो श को भजो। रासेअनुराग करो। अपनेल का िनरर ान रखो। सदैव आगेकदम बढ़ाओ।
धे( िहीधरभार चरणम् (लोट वणकर्-िवक…े ारािवरिचत ुत गीत मचुनौितयोंको ीकार करतेए आगेबढ़नेका आान िकया गया है। इसके णेता रावादी किव हऔर इस गीत के ारा उोनं ेजागरण तथा कमठता का सेश िदया है।) लोट्-िविधिलङ्-योग: चल चल पुरतो िनधेिह चरणम्। सदैव पुरतो िनधेिह चरणम्॥ सरलाथ चलो चलो, आगेकदम बढ़ाओ। सदैव आगेकदम बढ़ाओ। िगरिशखरेननुिनजिनकेतनम्। िवनैव यानंनगारोहणम्॥ बलंकीयंभवित साधनम्। सदैव पुरतो ------------------॥ सरलाथ मेरा िनवास पवत की चोटी पर है। यान के िबना मपवतारोहण करता ँ। अपना बल ही मु साधन होता है। सदैव आगेकदम बढ़ाओ। पिथ पाषाणा िवषमा: खरा:। िहंा: पशव: परतो घोरा:॥ सुदुरं खलुयिप गमनम्। सदैव पुरतो ------------------॥ सरलाथ मागमटेढ़ेमेढ़ेऔर नुकीलेपर ह। चारोंतरफ़ भयंकर व िहंसक पशुहजबिक गमन बत किठन है। (िफर भी) सदैव आगेकदम बढ़ाओ। जहीिह भीितंभज भज शम्। िवधेिह राेतथाऽनुरम्॥ कु कु सततंेय-रणम्। सदैव पुरतो ------------------॥ सरलाथ भय को ागो श को भजो। रासेअनुराग करो। अपनेल का िनरर ान रखो। सदैव आगेकदम बढ़ाओ।
शब्दार्थाः
पुरतो (पुरतः) - आगे
निधेहि - रखो
गिरिशिखरे - पर्वत की चोटी पर
निजनिकेतनम् - अपना निवास
विनैव (विना+एव) - बिना ही
नगारोहणम् (नग+आरोहणम्) - पर्वत पर चढ़ना
स्वकीयम् - अपना
पथि - मार्ग में
पाषाणाः - पत्थर
विषमाः - असामान्य
प्रखराः - तीक्ष्ण, नुकीले
हिंस्राः - हिंसक
परितो (परितः) - चारों ओर
घोराः - भयङ्कर, भयानक
सुदुष्करम् - अत्यन्त कठिनतापूर्वक साध्य
जहीहि - छोड़ो/छोड़ दो
भज - भजो, जपो
विधेहि - करो
अनुरक्तिम् - प्रेम, स्नेह
सततम् - लगातार
ध्येयस्मरणम् - उद्देश्य (लक्ष्य) का स्मरण
अभ्यासः
1. पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) स्वकीयं साधनं किं भवति?
(ख) पथि के विषमाः प्रखराः?
(ग) सततं किं करणीयम्?
(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः?
(ङ) स कीदृशः कविः मन्यते?
उतर-
उतर-
(क) बलम्।
(ख) पाषाणा:।
(ग) ध्येय स्मरणम्।
(घ) श्रीधर भास्कर वर्णेकर:।
(ङ) राष्ट्रवादी।
3 मञ्जूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
निधेहि विधेहि जहीहि देहि भज चल कुरु
यथा-त्वं पुरतः चरणं निधेहि।
(क) त्वं विद्यालयं .................।
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं .................।
(ग) मह्यं जलं .................।
(घ) मूढ! ................ धनागमतृष्णाम्।
(ङ) ................ गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं ................. ।
Answer:
(क) त्वं विद्यालयं चल।
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि।
(ग) मह्यं जलं देहि।
(घ) मूढ! जहीहि धनागमतृष्णाम्।
(ङ) भज गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं कुरु।
4. (अ) उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा-पुरतः चरणं निधेहि।
(क) निजनिकेतनं गिरिशिखरे अस्ति।
(ख) स्वकीयं बलं बाधकं भवति।
(ग) पथि हिंस्राः पशवः न सन्ति।
(घ) गमनं सुकरम् अस्ति।
(ङ) सदैव अग्रे एव चलनीयम्।
Answer:
यथा
|
पुरत: चरणं निधेहि।
|
आम्
|
(क)
|
निजनिकेतनं गिरिशिखरे अस्ति।
|
आम्
|
(ख)
|
स्वकीयं बलं बाधकं भवति।
|
न
|
(ग)
|
पथि हिंस्रा: पशव: न सन्ति।
|
न
|
(घ)
|
गमनं सुकरम् अस्ति।
|
न
|
(ङ)
|
सदैव अग्रे एव चलनीयम्।
|
आम्
|
(आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत-
परितः – पुरतः
नगः – नागः
आरोहणम् – अवरोहणम्
विषमाः – समाः
Answer:
परित: – ग्रामं परित: उद्यानम् अस्ति।
पुरत: – सत्यं पुरत: विजय अस्ति।
नग: – हिमालय: एक महान् नग: अस्ति।
नाग – शिव: नाग: धारयति।
आरोहणम् – किञ्चित यात्री वसयाने आरोहणम् करोति।
अवरोहणम् − किञ्चिदपि वसयानात् अवरोहणम् करोति।
विषमा: – सन्मार्गा: विषमा: भवति।
समा: – कुमार्गा: समा: भवति।
5. मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
एव खलु तथा परितः पुरतः सदा विना
(क) विद्यालयस्य ......पुरत:........... एकम् उद्यानम् अस्ति।
(ख) सत्यम् ......एव........... जयते।
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् .......खलु.......... ?
(घ) सः यथा चिन्तयति ........तथा......... आचरति।
(ङ) ग्रामं ......परित:..... वृक्षाः सन्ति।
(च) विद्यां ........विना......... जीवनं वृथा।
(छ) .......सदा.......... भगवन्तं भज।
6. विलोमपदानि योजयत-
पुरतः | विरक्तिः |
स्वकीयम् | आगमनम् |
भीतिः | पृष्ठतः |
अनुरक्तिः | परकीयम् |
गमनम् | साहसः |
Answer:
- पुरत:पृष्ठत:।स्वकीयम्परकीयम्।भीति:साहस:।अनुरक्ति:विरक्ति:।गमनम्आगमनम्।
7. (अ) लट्लकारपदेभ्यः लोट्-विधिलिङ्लकारपदानां निर्माणं कुरुत-
लट्लकारे | लोट्लकारे | विधिलिङ्लकारे |
यथा-पठति | पठतु | पठेत् |
खेलसि | ............... | ............... |
खादन्ति | ............... | ............... |
पिबामि | ............... | ............... |
हसतः | ............... | ............... |
नयामः | ............... | ............... |
Answer:
- लट्लकारेलोट्लकारेविधिलिङ्लकारेयथा-पठतिपठतुपठेत्खेलसिखेलखेले:खादन्तिखादन्तुखादेयु:पिबामिपिबानिपिबेयम्हसत:हसताम्हसेताम्नयाम:नयामनयेम
(आ) अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत-
यथा - गिरिशिखर (सप्तमी-एकवचने) - गिरिशिखरे
पथिन् (सप्तमी-एकवचने) - ..................
राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने) - ..................
पाषाण (सप्तमी-एकवचने) - ..................
यान (द्वितीया-बहुवचने) - ..................
शक्ति (प्रथमा-एकवचने) - ..................
पशु (सप्तमी-बहुवचने) - ..................
Answer:
यथा – गिरिशिखर (सप्तमी-एकवचने)
|
गिरिशिखरे
|
पथिन् (सप्तमी-एकवचने)
|
पथि
|
राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने)
|
राष्ट्राय
|
पाषाण (सप्तमी-एकवचने)
|
पाषाणे
|
यान (द्वितीया-बहुवचने)
|
यानानि
|
शक्ति (प्रथमा-एकवचने)
|
शक्ति:
|
पशु (सप्तमी-बहुवचने)
|
पशुनाम
|
योग्यता-विस्तारः
भावविस्तारः
डॉ. श्रीधरभास्कर वर्णेकर (1918-2005 ई.) नागपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में काव्य, नाटक, गीत इत्यादि विधाओं की अनेक रचनाएँ कीं। तीन खण्डों में संस्कृत-वाङ्मय-कोश का भी उन्होंने सम्पादन किया। इनकी रचनाओं में ‘शिवराज्योदयम्’ महाकाव्य एवं ‘विवेकानन्दविजयम्’ नाटक सुप्रसिद्ध हैं।
प्रस्तुत गीत में पज्झटिका छन्द का प्रयोग है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। हिन्दी में इसे चौपाई कहा जाता है।
भाषाविस्तारः
न गच्छति इति नगः। पतन् गच्छतीति पन्नगः।
उरसा गच्छतीति उरगः। वसु धारयतीति वसुधा।
खे (आकाशे) गच्छति इति खगः। सरतीति सर्पः।
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