8t th12पाठ
[प्रस्तुत पाठ स्वच्छता तथा पर्यावरण सुधार को ध्यान में रखकर सरल संस्कृत में लिखा गया एक संवादात्मक पाठ है। हम अपने आस-पास के वातावरण को किस प्रकार स्वच्छ रखें तथा यह भी ध्यान रखें कि नदियाें को प्रदूषित न करें, वृक्षों को न काटें, अपितु अधिकाधिक वृक्षारोपण करें और धरा को शस्यश्यामला बनाएँ। प्लास्टिक का प्रयोग कम करके पर्यावरण संरक्षण में योगदान करें। इन सभी बिन्दुओं पर इस पाठ में चर्चा की गई है। पाठ का प्रारंभ कुछ मित्रों की बातचीत से होता है, जो सायंकाल में दिन भर की गर्मी से व्याकुल होकर घर से बाहर निकले हैं-]
(ग्रीष्मर्तौ सायंकाले विद्युदभावे प्रचण्डोष्मणा पीडितः वैभवः गृहात् निष्क्रामति)
वैभवः -अरे परमिन्दर्! अपि त्वमपि विद्युदभावेन पीडितः बहिरागतः?
परमिन्दर् -आम् मित्र! एकतः प्रचण्डातपकालः अन्यतश्च विद्युदभावः परं बहिरागत्यापि पश्यामि यत् वायुवेगः तु सर्वथाऽवरुद्धः।
सत्यमेवोक्तम्
प्राणिति पवनेन जगत् सकलं, सृष्टिर्निखिला चैतन्यमयी।
क्षणमपि न जीव्यतेऽनेन विना, सर्वातिशायिमूल्यः पवनः।।
विनयः -अरे मित्र! शरीरात् न केवलं स्वेदबिन्दवः अपितु स्वेदधाराः इव प्रस्रवन्ति
स्मृतिपथमायाति शुक्लमहोदयैः रचितः श्लोकः।
तप्तैर्वाताघातैरवितुं लोकान् नभसि मेघाः,
आरक्षिविभागजना इव समये नैव दृश्यन्ते।।
परमिन्दर् -आम् अद्य तु वस्तुतः एव-
निदाघतापतप्तस्य, याति तालु हि शुष्कताम्।
पुंसो भयार्दितस्येव, स्वेदवज्जायते वपुः।।
जोसेफः -मित्राणि! यत्र-तत्र बहुभूमिकभवनानां, भूमिगतमार्गाणाम्, विशेषतः मैट्रोमार्गाणां, उपरिगमिसेतूनाम् मार्गेत्यादीनां निर्माणाय वृक्षाः कर्त्यन्ते तर्हि अन्यत् किमपेक्ष्यते अस्माभिः? वयं तु विस्मृतवन्तः एव-
एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना।
दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा।।
परमिन्दर् -आम् एतदपि सर्वथा सत्यम्। आगच्छन्तु नदीतीरं गच्छामः। तत्र चेत् काञ्चित् शान्तिं प्राप्तुं शक्ष्येम
(नदीतीरं गन्तुकामाः बालाः यत्र-तत्र अवकरभाण्डारं दृष्ट्वा वार्तालापं कुर्वन्ति)
जोसेफः -पश्यन्तु मित्राणि यत्र-तत्र प्लास्टिकस्यूतानि अन्यत् चावकरं प्रक्षिप्तमस्ति। कथ्यते यत् स्वच्छता स्वास्थ्यकरी परं वयं तु शिक्षिताः अपि अशिक्षित इवाचरामः अनेन प्रकारेण....
वैभवः -गृहाणि तु अस्माभिः नित्यं स्वच्छानि क्रियन्ते परं किमर्थं स्वपर्यावरणस्य स्वच्छतां प्रति ध्यानं न दीयते
विनयः - पश्य-पश्य उपरितः इदानीमपि अवकरः मार्गे क्षिप्यते।
(आहूय) महोदये! कृपां कुरू मार्गे भ्रमत्सु। एतत् तु सर्वथा अशोभनं कृत्यम्। अस्मद्सदृशेभ्यः बालेभ्यः भवतीसदृशैः एवं संस्कारा देयाः।
रोजलिन् - आम् पुत्र! सर्वथा सत्यं वदसि। क्षम्यन्ताम््। इदानीमेवागच्छामि।
(रोजलिन् आगत्य बालैः साकं स्वक्षिप्तमवकरं मार्गे विकीर्णमन्यदवकरं चापि सङ ् गृह्य
अवकरकण्डोले पातयति)
बालाः - एवमेव जागरूकतया एव प्रधानमन्त्रिमहोदयानां स्वच्छताऽभियानमपि गतिं प्राप्स्यति।
विनयः - पश्य पश्य तत्र धेनुः शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि खादति। यथाकथञ्चित् निवारणीया एषा
(मार्गे कदलीफलविक्रेतारं दृष्ट्वा बालाः कदलीफलानि क्रीत्वा धेनुमाह्वयन्ति भोजयन्ति च, मार्गात् प्लास्टिकस्यूतानि चापसार्य पिहिते अवकरकण्डोले क्षिपन्ति)
परमिन्दर् - प्लास्टिकस्य मृत्तिकायां लयाभवात् अस्माकं पर्यावरणस्य कृते महती क्षतिः भवति। पूर्वं तु कार्पासेन, चर्मणा, लौहेन, लाक्षया, मृत्तिकया, काष्ठेन वा निर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते स्म। अधुना तत्स्थाने प्लास्टिकनिर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते
वैभवः - आम् घटिपट्टिका, अन्यानि बहुविधानि पात्राणि, कलमेत्यादीनि सर्वाणि तु प्लास्टिकनिर्मितानि भवन्ति।
जोसेफः - आम् अस्माभिः पित्रोः शिक्षकाणां सहयोगेन प्लास्टिकस्य विविधपक्षाः विचारणीयाः। पर्यावरणेन सह पशवः अपि रक्षणीयाः। (एवमेवालपन्तः सर्वे नदीतीरं प्राप्ताः, नदीजले निमज्जिताः भवन्ति गायन्ति च-
सुपर्यावरणेनास्ति जगतः
सुस्थितिः सखे।
जगति जायमानानां सम्भवः
सम्भवो भुवि।।
सर्वे- अतीवानन्दप्रदोऽयं जलविहारः।
ुत पाठ पयावरण पर केत है। हमारेजीवन माक का इस सीमा तक वेश हो चुका हैिक हम इसके िबना दैिनक जीवन चलानेकी कना भी नहीं कर पाते। जबिक ाक पयावरण के िलए घातक है। ाक के बढ़तेए उपयोग पर िच लगातेए इस पाठ मपयावरण तथा दूषण की समा के ित संवेदनशील समझ िवकिसत करनेका यास िकया गया है। कुछ बािलकाएँघूमनेके िलए िनकली ई परर वातालाप कर रही ह। रपी – परिमर! परिमर! यहाँआओ, उान मवेश करतेह। परमर – अरे! बगीचेके ार पर ही फकी गई ाक की थैिलयाँइधर-उधर िबखरी पड़ी ह। कचनार – लोग लापरवाही करतेह। ाक की थैिलयोंमखा वुएँलेकर खातेह। परुउन (छोटी) थैिलयोंको राेमजहाँकहींभी फक देतेह। रोज़िलन – बत बड़ी समा हैयह। ा हम वेश कर? रपी – अा, वेश करतेह। (सभी बगीचेमवेश करतेह।) कचनार – हम कहाँबैठ? रपी – इस लकड़ी की बच पर बैठतेह। (सभी बैठती ह।) रपी – ा तुम सब देखती हो? हम जहाँबैठेहवहाँकौन-सी वुए ह? परमर – हाँ, हाँ। बत वुएँचारोंतरफ़ फैली पड़ी ह। कचनार – जैसे - थैिलयाँ, पानी की बोतल, गद आिद। रोज़िलन – सखी। अपना भी देखो। चेना – हाँ, हाँ। देख रही ँ। मेरेपास कं घा, कुल, हेयर बड, घड़ी का पा, कं गन आिद सभी थत ह। ा कहना चाहती हो? रपी – यह ान देना चािहए िक सभी वुए ाक सेबनती ह। कचनार – पहलेतो ाय: कपास से, चमड़े, लोहेसे, लाख से, िमी सेया लकड़ी सेबनी ई वुएँही िमलती थी।ं अब उसके थान पर ाक सेबनी वुएँ चारोंओर िबखरी ई ह। येकम कीमत की भी ह। चेना – अरे! कलम को तो भूल ही गई। कोई यह अनुमान कर सकता हैिक एक कलम मिकतनेरिफल योग मलाए जातेह? परिमर – अनुमान हैिक ेक छा ित साह अपनी कलम मएक (नया) रिफल डालतेह। ताययह हैिक एक ही वषमवह कम सेकम पचास रिफल योग मलातेह। चेना – परुा हम एक वषमएक ही कलम का योग करतेह? सामूिहक र – नही, ं नही।ं वषमतो ाय: अनेक कलम िवलु हो जाती ह। रपी – एक छाा तीन महीनोंमएक कलम खरीदती है। अथात्वषमचार कलम खरीदती है। रोज़िलन – और दुसरेकलम के साथ रिफल भी ाक के कवर मडाली जाती है। तो जोड़कर ितवषएक छाा ाय: पचास रिफल, चार कलम और चौवन कवरोंका योग करती है। कचनार – ठीक है, बत योग होनेवालेाक के दूरगामी और घातक परणाम को हम देख नहींसकतेह। ाक न तो कभी गलती हैऔर न ही कभी न होती है। जैसेदूसरी वुएँन होकर िमी मिमल जाती ह। चेना – ाक का िमी मिवलय नहींहोनेसेपयावरण के िलए भारी ित होती है। रपी – एक पदाथसेदूसरा पदाथबनता हैया न वुिमी मिमल जाती हपरुाक मयह िया असंभव है। परिमर – कना करो, यिद सौ वष तक ाक सेबनेपदाथ की िनमाण िया पृी पर चलेगी तो ा होगा? (सभी खेद सिहत िवचार करतेह।)
ुत पाठ पयावरण पर केत है। हमारेजीवन माक का इस सीमा तक वेश हो चुका हैिक हम इसके िबना दैिनक जीवन चलानेकी कना भी नहीं कर पाते। जबिक ाक पयावरण के िलए घातक है। ाक के बढ़तेए उपयोग पर िच लगातेए इस पाठ मपयावरण तथा दूषण की समा के ित संवेदनशील समझ िवकिसत करनेका यास िकया गया है। कुछ बािलकाएँघूमनेके िलए िनकली ई परर वातालाप कर रही ह। रपी – परिमर! परिमर! यहाँआओ, उान मवेश करतेह। परमर – अरे! बगीचेके ार पर ही फकी गई ाक की थैिलयाँइधर-उधर िबखरी पड़ी ह। कचनार – लोग लापरवाही करतेह। ाक की थैिलयोंमखा वुएँलेकर खातेह। परुउन (छोटी) थैिलयोंको राेमजहाँकहींभी फक देतेह। रोज़िलन – बत बड़ी समा हैयह। ा हम वेश कर? रपी – अा, वेश करतेह। (सभी बगीचेमवेश करतेह।) कचनार – हम कहाँबैठ? रपी – इस लकड़ी की बच पर बैठतेह। (सभी बैठती ह।) रपी – ा तुम सब देखती हो? हम जहाँबैठेहवहाँकौन-सी वुए ह? परमर – हाँ, हाँ। बत वुएँचारोंतरफ़ फैली पड़ी ह। कचनार – जैसे - थैिलयाँ, पानी की बोतल, गद आिद। रोज़िलन – सखी। अपना भी देखो। चेना – हाँ, हाँ। देख रही ँ। मेरेपास कं घा, कुल, हेयर बड, घड़ी का पा, कं गन आिद सभी थत ह। ा कहना चाहती हो? रपी – यह ान देना चािहए िक सभी वुए ाक सेबनती ह। कचनार – पहलेतो ाय: कपास से, चमड़े, लोहेसे, लाख से, िमी सेया लकड़ी सेबनी ई वुएँही िमलती थी।ं अब उसके थान पर ाक सेबनी वुएँ चारोंओर िबखरी ई ह। येकम कीमत की भी ह। चेना – अरे! कलम को तो भूल ही गई। कोई यह अनुमान कर सकता हैिक एक कलम मिकतनेरिफल योग मलाए जातेह? परिमर – अनुमान हैिक ेक छा ित साह अपनी कलम मएक (नया) रिफल डालतेह। ताययह हैिक एक ही वषमवह कम सेकम पचास रिफल योग मलातेह। चेना – परुा हम एक वषमएक ही कलम का योग करतेह? सामूिहक र – नही, ं नही।ं वषमतो ाय: अनेक कलम िवलु हो जाती ह। रपी – एक छाा तीन महीनोंमएक कलम खरीदती है। अथात्वषमचार कलम खरीदती है। रोज़िलन – और दुसरेकलम के साथ रिफल भी ाक के कवर मडाली जाती है। तो जोड़कर ितवषएक छाा ाय: पचास रिफल, चार कलम और चौवन कवरोंका योग करती है। कचनार – ठीक है, बत योग होनेवालेाक के दूरगामी और घातक परणाम को हम देख नहींसकतेह। ाक न तो कभी गलती हैऔर न ही कभी न होती है। जैसेदूसरी वुएँन होकर िमी मिमल जाती ह। चेना – ाक का िमी मिवलय नहींहोनेसेपयावरण के िलए भारी ित होती है। रपी – एक पदाथसेदूसरा पदाथबनता हैया न वुिमी मिमल जाती हपरुाक मयह िया असंभव है। परिमर – कना करो, यिद सौ वष तक ाक सेबनेपदाथ की िनमाण िया पृी पर चलेगी तो ा होगा? (सभी खेद सिहत िवचार करतेह।)
शब्दार्थाः
विद्युदभावे - बिजली चले जाने पर
प्रचण्डोष्मणा (प्रचण्ड + ऊष्मणा) - बहुत गर्मी से
निष्क्रामति - निकलता है
अवरुद्धः - रुका हुआ है
स्वेदबिन्दवः - पसीने की बूँदें
स्वेदधाराः इव - पसीने की नदियाँ सी
प्रस्रवन्ति - बह रही हैं
निदाघतापतप्तस्य - ग्रीष्म के ताप से दुःखी मनुष्य का पुंसो भयार्दितस्येव - भयभीत मनुष्य के समान
उपरिगामिसेतूनाम् - ऊर्ध्वगामी पुलों के
कर्त्यन्ते - काटे जा रहे हैं
वह्निना - आग से
दह्यते - जलाया जाता है
चेत् - शायद
अवकरभाण्डारम् - कूड़े के ढेर को
प्लास्टिकस्यूतानि - प्लास्टिक के लिफाफे
इवाचरामः (इव+आचरामः) - के समान व्यवहार करते हैं
क्षिप्यते - फेंका जा रहा है
आहूय - बुलाकर (आवाज़ लगा कर)
मार्गे भ्रमत्सु - रास्ते में चलने वालों पर
देयाः - देने योग्य
विकीर्णम् - बिखरा हुआ
सङगृह्य - इकट्ठा कर के
शाकफलानामावरणैः सह - सब्ज़ियों और फलों के छिलकों के साथ
पिहिते अवकरकण्डोले - ढके हुए कूड़ेदान में
कार्पासेन - कपास से
चर्मणा - चमड़े से
आलपन्तः - बात करते हुए
अभ्यासः
1. प्रश्नानामुत्तराणि एकपदेन लिखत–
(क) केन पीडितः वैभवः बहिरागतः?
(ख) भवनेत्यादीनां निर्माणाय के कर्त्यन्ते?
(ग) मार्गे किं दृष्ट्वा बालाः परस्परं वार्तालापं कुर्वन्ति?
(घ) वयं शिक्षिताः अपि कथमाचरामः?
(ङ) प्लास्टिकस्य मृत्तिकायां लयाभावात् कस्य कृते महती क्षतिः भवति?
(च) अद्य निदाघतापतप्तस्य किं शुष्कतां याति?
2. पूर्णवाक्येन उत्तराणि लिखत–
(क) परमिन्दर् गृहात् बहिरागत्य किं पश्यति?
(ख) अस्माभिः केषां निर्माणाय वृक्षाः कर्त्यन्ते?
(ग) विनयः सङ गीतामाहूय किं वदति?
(घ) रोजलिन् आगत्य किं करोति?
(ङ) अन्ते जोसेफः पर्यावरणरक्षायै कः उपायः बोधयति?
3. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत–
(क) जागरूकतया एव स्वच्छताऽभियानमपि गतिं प्राप्स्यति।?
(ख) धेनुः शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि खादति स्म?
(ग) वायुवेगः सर्वथाऽवरुद्धः आसीत्?
(घ) सर्वे अवकरं सङ ् गृह्य अवकरकण्डोले पातयन्ति?
(ङ) अधुना प्लास्टिकनिर्मितानि वस्तूनि प्रायः प्राप्यन्ते?
(च) सर्वे नदीतीरं प्राप्ताः प्रसन्नाः भवन्ति?
4. सन्धिविच्छेदं पूरयत-
(क) ग्रीष्मर्तौ - ......................... + ऋृतौ
(ख) बहिरागत्य - बहिः + .........................
(ग) काञ्चित् - ......................... + चित्
(घ) तद्वनम् - ......................... + वनम्
(ङ) कलमेत्यादीनि - कलम + ......................
(च) अतीवानन्दप्रदोऽयम् - ....................... + आनन्दप्रदः + ...................
5. विशेषणपदैः सह विशेष्यपदानि योजयत-
काञ्चित् | अवकरम् |
स्वच्छानि | स्वास्थ्यकरी |
पिहिते | क्षतिः |
स्वच्छता | शान्तिम् |
गच्छन्ति | गृहाणि |
अन्यत् | अवकरकण्डोले |
महती | मित्राणि |
6. शुद्धकथनानां समक्षम् आम् अशुद्धकथनानां समक्षं च न इति लिखत–
(क) प्रचण्डोष्मणा पीडिताः बालाः सायंकाले एकैकं कृत्वा गृहाभ्यन्तरं गताः।
(ख) मार्गे मित्राणि अवकरभाण्डारं यत्र-तत्र विकीर्णं दृष्ट्वा वार्तालापं कुर्वन्ति।
(ग) अस्माभिः पर्यावरणस्वच्छतां प्रति प्रायः ध्यानं न दीयते।
(घ) वायुं विना क्षणमपि जीवितुं न शक्यते।
(ङ) रोजलिन् अवकरम् इतस्ततः प्रक्षेपणात् अवरोधयति बालकान्।
(च) एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वनं सुपुत्रेण कुलमिव दह्यते।
(छ) बालकाः धेनुं कदलीफलानि भोजयन्ति।
(ज) नदीजले निमज्जिताः बालाः प्रसन्नाः भवन्ति।
7. घटनाक्रमानुसारं लिखत–
(क) उपरितः अवकरं क्षेप्तुम् उद्यतां रोजलिन् बालाः प्रबोधयन्ति।
(ख) प्लास्टिकस्य विविधान् पक्षान् विचारयितुं पर्यावरणसंरक्षणेन पशूनेत्यादीन् रक्षितुं बालाः कृतनिश्चयाः भवन्ति।
(ग) गृहे प्रचण्डोष्मणा पीडितानि मित्राणि एकैकं कृत्वा गृहात् बहिरागच्छन्ति।
(घ) अन्ते बालाः जलविहारं कृत्वा प्रसीदन्ति।
(ङ) शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि खादन्तीं धेनुं बालकाः कदलीफलानि भोजयन्ति।
(च) वृक्षाणां निरन्तरं कर्तनेन, ऊष्मावर्धनेन च दुःखिताः बालाः नदीतीरं गन्तुं प्रवृत्ताः भवन्ति।
(छ) बालैः सह रोजलिन् अपि मार्गे विकीर्णमवकरं यथास्थानं प्रक्षिपति।
(ज) मार्गे यत्र-तत्र विकीर्णमवकरं दृष्ट्वा पर्यावरणविषये चिन्तिताः बालाः परस्परं विचारयन्ति।
योग्यता-विस्तारः
भावविस्तारः
आज के युग में पर्यावरण जिस प्रकार प्रदूषित हो रहा है वह वास्तव में ही समाज के लिए चिन्ता का विषय है प्राचीनकाल में औद्योगीकरण के लिए विशाल कल-कारखाने नहीं थे, यातायात के लिए पैट्रोल, डीजल से चलने वाली इतनी अधिक गाड़ियाँ नहीं थीं, जनसंख्या इतनी नहीं थी कि कूड़े के ढेर लग जाएँ। खान-पान की चीज़ों में भी मिलावट नगण्य थी और सामाजिक चरित्र में भी सम्भवतः इतनी गिरावट नहीं आई थी जितनी आज आ गई है। आज प्रकृति और मानव दोनों की शुद्धता द्वारा पर्यावरण को संरक्षित करने की अत्यधिक आवश्यकता है अतः हम सभी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि अपने आस-पास गन्दगी न फैलने दें, वृक्षों को न काटें अपितु अधिकाधिक वृक्षारोपण करें। प्लास्टिक का प्रयोग न करें तथा इन सभी विचारों को जन-जन तक पहुँचाएँ।
पर्यावरण संरक्षण से संबंधित निम्न श्लोकों को भी पढ़िए तथा स्मरण करके विद्यालय की प्रार्थना सभा में सुनाकर जनचेतना जगाइये-
पर्यावरणनाशेन, विरमेत् विरतो भवेत्।
मानवो मानवो भूत्वा, कुर्यात् प्रकृतिरक्षणम्।।
संरक्षेत् दूषितो न स्याल्लोकः मानवजीवनम्।
न कोऽपि कस्यचिद्नाशं, कुर्यादर्थस्य सिद्धये।।
भुक्त्वा यान्ति च पञ्चत्वं, दुष्प्लास्टिकमजैविकम्।
पशवोऽनुर्वरा भूमिर्जायते, ज्वालिते विषम्।।
प्लास्टिककृतवस्तूनां वस्तुवहनहेतवे।
परित्यज प्रयोगं भोः वस्त्रमाश्रय धारय।।
वदन् रुदन् तरोः कण्ठञ्छुष्कं दुःखेन संयुतम्।
पाहि मां पाहि मामुच्चैर्घोषं कुर्वन्ति पादपाः।।
पर्यावरणनाशेन नश्यन्ति सर्वजन्तवः।
पवनः दुष्टतां याति प्रकृतिर्विकृतायते।।
भाषाविस्तारः
संस्कृत में वाक्य में पहले ‘अपि’ लगाने से वाक्य प्रश्न वाचक हो जाता है। जैसे-अपि प्रविशामः? क्या हम भीतर चलें?
धातु-संयुक्त तुमुन् प्रत्यय के अनुस्वार का लोप करके उसके आगे कामा/कामः जोड़ने से अमुक कार्य करना चाहने वाली/चाहने वाला-यह मुहावरेदार प्रयोग होता है। जैसे-गन्तुकामा, वक्तुकामा, कर्त्तुकामः इत्यादि। इस प्रक्रिया के आधार पर नीचे लिखे वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद करें-
(क) राम क्या कहना चाहता है?
(ख) क्रिस्तीना कहाँ जाना चाहती है?
(ग) वह करना क्या चाहता है?
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