Class-6- chapter 5
वने वने निवसन्तो वृक्षाः।
वनं वनं रचयन्ति वृक्षाः ।।1।।
शाखादोलासीना विहगाः।
तैः किमपि कूजन्ति वृक्षाः ।।2।।
पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्।
साधुजना इव सर्वे वृक्षाः ।।3।।
स्पृशन्ति पादैः पातालं च।
नभः शिरस्सु वहन्ति वृक्षाः ।।4।।
पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम्
कौतुकेन पश्यन्ति वृक्षाः ।।5।।
प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम्।
कुर्वन्ति सत्कारं वृक्षाः। ।।6।।
ुत ोकोंमकिव नेवृोंका वणन िकया है : 1. वह कहता हैिक वृ ऐसेह, जो हर जंगल मिमलतेह। इींवृोंसेवनोंका िनमाण आ है। 2. पी डाली पी झलू ेमबैठेह। मानो अपनी डािलयोंपर बैठेपियोंके साथ पेड़ भी कूक रहेहa अथात वेहमकुछ कहना चाहतेह। 3. वेपवन तथा जल का लगातार सेवन करतेहया उपीतेह। ऐसा लगता हैमानो सभी वृ सनोंके समान ह। 4. उनकी पाँव पी जड़पाताल मिवमान होती हऔर उनका ऊपरी भाग अपनेऊपर आकाश को धारण िकए होता है। अथात वृ की जड़धरती मबत गहरी होती हऔर उनका ऊपरी भाग धरती सेऊपर बत ऊँचाई पर होता है। इससेउनकी महानता का पता चलता है। 5. जल पी दपण मवृ अपनी छिव बड़ी हैरानी सेदेखतेह। अथात िकसी तालाब या नदी मजब वृ का ितिबंब िदखता है, तो लगता है मानो वेबड़ी हैरानी सेदेख रहेहो।ं 6. वृ अपनी छाया को िबछोना बनाकर लोगोंका आदर-सार करतेह। अथात वृ आने-जानेवालेराहगीरोंको छाया देखकर उनको आराम करनेके िलए बुलातेह।
ुत ोकोंमकिव नेवृोंका वणन िकया है : 1. वह कहता हैिक वृ ऐसेह, जो हर जंगल मिमलतेह। इींवृोंसेवनोंका िनमाण आ है। 2. पी डाली पी झलू ेमबैठेह। मानो अपनी डािलयोंपर बैठेपियोंके साथ पेड़ भी कूक रहेहa अथात वेहमकुछ कहना चाहतेह। 3. वेपवन तथा जल का लगातार सेवन करतेहया उपीतेह। ऐसा लगता हैमानो सभी वृ सनोंके समान ह। 4. उनकी पाँव पी जड़पाताल मिवमान होती हऔर उनका ऊपरी भाग अपनेऊपर आकाश को धारण िकए होता है। अथात वृ की जड़धरती मबत गहरी होती हऔर उनका ऊपरी भाग धरती सेऊपर बत ऊँचाई पर होता है। इससेउनकी महानता का पता चलता है। 5. जल पी दपण मवृ अपनी छिव बड़ी हैरानी सेदेखतेह। अथात िकसी तालाब या नदी मजब वृ का ितिबंब िदखता है, तो लगता है मानो वेबड़ी हैरानी सेदेख रहेहो।ं 6. वृ अपनी छाया को िबछोना बनाकर लोगोंका आदर-सार करतेह। अथात वृ आने-जानेवालेराहगीरोंको छाया देखकर उनको आराम करनेके िलए बुलातेह।
डॉ. हर्षदेवमाधवः
शब्दार्थाः
वने वने - प्रत्येक वन में in each forest
निवसन्तः - रहते हुए/रहने वाले living
रचयन्ति - रचते हैं, बनाते हैं make
शाखा - डालियाँ, टहनियाँ branches
दोला - झूला swing
आसीनाः - बैठे हुए sitting
विहगाः - पक्षीगण birds
किमपि - कुछ भी anything/something
कूजन्ति - कूकते हैं/कूकती हैं chirp
सन्ततम् - निरन्तर/लगातार always
साधुजनाः - तपस्वी लोग/सज्जन sages
इव - की तरह like
पिबन्ति - पीते हैं drink
स्पृशन्ति - स्पर्श करते हैं touch
नभः - आकाश को the sky
शिरस्सु - सिर पर on head
वहन्ति - ढोते हैं carry
पयोदर्पणे - जलरूपी दर्पण/आईने में in mirror-like water
स्वप्रतिबिम्बम् - अपने प्रतिबिम्ब को one’s own image
पश्यन्ति - देखते हैं see, look at
कौतुकेन - आश्चर्य से with wonder
प्रसार्य - फैलाकर expanding
स्वच्छायासंस्तरणम् - अपनी छाया रूपी own shadow’s-bed
(स्व+च्छाया+संस्तरणम्) - बिस्तरे को
सत्कारम् - आदर respect
अभ्यासः
1. वचनानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत-
एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
यथा- वनम् वने वनानि
........... जले ...........
बिम्बम् ........... ...........
यथा- वृक्षम् वृक्षौ वृक्षान्
........... ........... पवनान्
........... जनौ ...........
2. कोष्ठकेषु प्रदत्तशब्देषु उपयुक्तविभक्तिं योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा- अहं रोटिकां खादामि। (रोटिका)
(क) त्वं ...................... पिबसि। (जल)
(ख) छात्रः ...................... पश्यति। (दूरदर्शन)
(ग) वृक्षाः ......................पिबन्ति। (पवन)
(घ) ताः ...................... लिखन्ति। (कथा)
(ङ) आवाम् ...................... गच्छावः। (जन्तुशाला)
3. अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदानि चिनुत-
(क) वृक्षाः नभः शिरस्सु वहन्ति।
(ख) विहगाः वृक्षेषु कूजन्ति।
(ग) पयोदर्पणे वृक्षाः स्वप्रतिबिम्बं पश्यन्ति।
(घ) कृषकः अन्नानि उत्पादयति।
(ङ) सरोवरे मत्स्याः सन्ति।
4. प्रश्नानामुत्तरााणि एकपदेन लिखत-
(क) वृक्षाः कैः पातालं स्पृशन्ति?
(ख) वृक्षाः किं रचयन्ति?
(ग) विहगाः कुत्र आसीनाः।
(घ) कौतुकेन वृक्षाः किं पश्यन्ति?
5. समुचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत-
विभक्तिः एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
प्रथमा गजः गजौ गजाः
अश्वः .............. ..............
द्वितीया सूर्यम् सूर्यौ सूर्यान्
.............. .............. चन्द्रान्
तृतीया विडालेन विडालाभ्याम् विडालैः
.............. मण्डूकाभ्याम् ..............
चतुर्थी सर्पाय .............. सर्पेभ्यः
.............. वानराभ्याम् ..............
पञ्चमी मोदकात् .............. . .............
.............. . ............. वृक्षेभ्यः
षष्ठी जनस्य जनयोः जनानाम्
.............. . ............. शुकानाम्
सप्तमी शिक्षके .............. शिक्षकेषु
.............. मयूरयोः ..............
सम्बोधनम् हे बालक! हे बालकौ! हे बालकाः!
नर्तक! .............. ..............
6. भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत-
(क) गङ्गा, लता, यमुना, नर्मदा।
(ख) उद्यानम्, कुसुमम्, फलम्, चित्रम्।
(ग) लेखनी, तूलिका, चटका, पाठशाला।
(घ) आम्रम्, कदलीफलम्, मोदकम्, नारङ्गम्।
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