Tuesday, April 14, 2020

Class -6-chapter 10

RuchiraBhag1-010

दशमः पाठः

कृषिकाः कर्मवीराः


सूर्यस्तपतु मेघाः वा  वर्षन्तु विपुलं जलम्।
कृषिका कृषिको नित्यं शीतकालेपि कर्मठौ ।।1।।
ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं शीते कम्पमयं सदा
हलेन च कुदालेन तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः ।।2।।
पादयोर्न पदत्राणे शरीरे वसनानि नो
निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति ।।3।।
गृहं जीर्णं  वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति ।।4।।
तयोः श्रमेण क्षेत्राणि  सस्यपूर्णानि सर्वदा।
धरित्री सरसा जाता या शुष्का कण्टकावृता ।।5।।
शाकमन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा सर्वेभ्य एव तौ।
क्षुधा-तृषाकुलौ नित्यं विचित्रौ जन-पालकौ ।।6।।




वीराः  1. सूयधरती को िकतना भी तपाए या बादल िकतनी भी बारश कर। िकसान तथा उसकी पी कमठतापूवक सद की ऋतुमभी अपना काम करतेरहतेह। 2. उनका शरीर गम मपसीनेसेऔर शीत मठंड सेकाँपतेए क सहता रहता है। लेिकन वेिनरंतर हल तथा कुदाल लेकर अपनेखेतोंको जोतनेमलगेरहतेह। 3. िकसानोंके पैर िबना जूतेके ह, शरीर िबना कपड़ोंके है, वह गरीब है, उसका जीवन कोंसेभरा है, सुख तो उससेदूर ही रहता है। 4. घर की दशा दयनीय है, उसका घर उसेबारश स◌ेसुरित नहींकर पाता। इन सबके बाद भी वह कमठ होकर अपना कायकरता रहता है। भाव यह हैिक इतनेदुख के बाद भी वह अपनेकायसेभागता नहींहै। 5. उनकी कमिना के कारण ही खेतोंमफसल लहलहाती रहती है। िजस धरती की दशा पहलेखराब थी। वह सूखी पड़ी थी तथा कांटोंभरी झािड़योंसेयु थी। आज वह हरयाली सेयु हो गई है। भाव यह हैिक उनके परम सेधरती सदैव हरी रहती है। 6. वह सभी को सयाँतथा अ दान करतेह। लेिकन भूख और ास सेयंाकुल होतेह। वेऐसेजनपालक ह, जो यंमअनोखेह। भाव यह हैिक दूसरोंको अ दान करनेवालेयं के िलए भोजन जुटानेमअसमथह। 

      शब्दार्थाः

तपतु -तपाये, जलाये  may burn
विपुलम् - अत्यधिक in large amount
कर्मठौ - निरन्तर क्रियाशील active
सस्वेदम् - पसीने से युक्त full of sweat
पदत्राणे जूते shoes
वसनानि - कपड़े clothes
जीर्णम् - पुराना old
वारयितुम् - दूर करने में in removing
क्षमम् - समर्थ able
सस्यपूर्णानि - फसल से युक्त full of crops
धरित्री - पृथ्वी earth
कण्टकावृता - काँटों से परिपूर्ण full of thorns
क्षुधातृषाकुलौ भूख प्यास से बेचैन distressed with hunger and thirst

अभ्यासः

1. उच्चारणं कुरुत-
सूर्यस्तपतु     जीर्णम्     शीतकालेपि
वारयितुम्        ग्रीष्मे     सस्यपूर्णानि
पदत्राणे    कण्टकावृता   क्षुधा-तृषाकुलौ
2. श्लोकांशान् योजयत-
         क                                 ख
गृहं जीर्णं न वर्षासु     तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः।
हलेन च कुदालेन      या शुष्का कण्टकावृता।
पादयोर्न पदत्राणे        सस्यपूर्णानि सर्वदा।
तयोः श्रमेण क्षेत्राणि    शरीरे वसनानि नो।
धरित्री सरसा जाता     वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
3. उपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘आम्’ अनुपयुक्तकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा- कृषकाः शीतकालेपि कर्मठाः भवन्ति।     12
    कृषकाः हलेन क्षेत्राणि न कर्षन्ति।           1233
(क) कृषकाः सर्वेभ्यः अन्नं यच्छन्ति।            
(ख) कृषकाणां जीवनं कष्टप्रदं न भवति।        
(ग) कृषकः क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि करोति।         
(घ) शीते शरीरे कम्पनं न भवति।               
(ङ) श्रमेण धरित्री सरसा भवति।                
4. मञ्जूषातः पर्यायवाचिपदानि चित्वा लिखत-
रविः   वस्त्राणि  जर्जरम्   अधिकम्   पृथ्वी   पिपासा
वसनानि .....................
सूर्यः .....................
तृषा .....................
विपुलम् .....................
जीर्णम् .....................
धरित्री .....................
5. मञ्जूषातः विलोमपदानि चित्वा लिखत-
धनिकम्  नीरसा   अक्षमम्   दुःखम्   शीते      पार्श्वे
सुखम् .....................
दूरे .....................
निर्धनम् .....................
क्षमम् .....................
ग्रीष्मे .....................
सरसा .....................
6. प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-
(क) कृषकाः केन क्षेत्राणि कर्षन्ति?
(ख) केषां कर्मवीरत्वं न नश्यति?
(ग) श्रमेण का सरसा भवति?
(घ) कृषकाः सर्वेभ्यः किं किं यच्छन्ति?
(ङ) कृषकात् दूरे किं तिष्ठति?

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